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Friday 18 April 2014

प्रभावी समाचार लेखन के गुर

परिचयः 
मनुष्य एक सामाजिक और जिज्ञासु प्राणी है। वह जिस समूह, समाज या वातावरण में रहता है उस के बारे में और अधिक जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है, और कहीं न कहीं उसे उसकी इसी जिज्ञासा ने आज सृष्टि का सबसे विकसित प्राणी भी बनाया है। प्राचीन काल से ही उसने सूचनाओं को यहां से वहां पहुंचाने के लिए संदेशवाहकों, तोतों व घुड़सवारों की मदद लेने, सार्वजनिक स्थानों पर संदेश लिखने जैसे तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों को खोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना भी एक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया, और आज भी प्रयोग किया जाता है। समाचार पत्र रेडियो टेलिविजन, मोबाइल फोन व इंटरनेट समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम संचार माध्यम हैं, जो छपाई, रेडियो व टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोजों के बाद अस्तित्व में आए हैं।

समाचार की परिभाषा

सामान्य मानव गतिविधियों से इतर जो कुछ भी नया और खास घटित होता है, समाचार कहलाता है। मेले, उत्सव, दुर्घटनाएं, विपदा, सरकारी बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सरकारी सुविधाओं का न मिलना सब समाचार हैं। विचार घटनाएं और समस्याओं से समाचार का आधार तैयार होता है। किसी भी घटना का अन्य लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकते हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।
समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं तथा सूचनाओं और भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों को व्यवस्थित तरीके से लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।

कुछ परिभाषाएंः      
  • किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है: डॉ निशांत सिंह
  • किसी घटना की नई सूचना समाचार है: नवीन चंद्र पंत
  • वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो: नंद किशोर त्रिखा
  • किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है: संजीव भनावत
  • ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो: रामचंद्र वर्मा

इसके अलावा भी समाचार को निम्न प्रकार से भी परिभाषित किया जाता हैः
  • जो हमारे चारों ओर घटित होता है, और हमें प्रभावित करता है, वह समाचार है।
  • जिस घटना को पत्रकार लाता व लिखता तथा संपादक समाचार पत्र में छापता या दिखाने योग्य समझ कर टीवी में प्रसारित करता है, वह समाचार है। (क्योंकि यदि वह छपा ही नहीं या टीवी पर दिखाया ही नहीं गया तो फिर समाचार कहां रहा।)
  • समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है। कोई भी समाचार अगला समाचार आने पर इतिहास बन जाता है।
  • समाचार सत्य, विश्वसनीय तथा कल्याणकारी होना चाहिए। जो समाज में दुर्भावना फैलाता हो अथवा झूठा हो, समाचार नहीं हो सकता। सत्यता समाचार का बड़ा गुण है।
  • समाचार सूचना देने, शिक्षित करने और मनोरंजन करने वाला भी होना चाहिए।
  • समाचार रोचक होना चाहिए। उसे जानने की लोगों में इच्छा होनी चाहिए।
  • समाचार अपने पाठकों-श्रोताओं की छह ककार (5W & 1H, What, when, where, why, who and How) (क्या हुआ, कब हुआ, कहां हुआ, क्यों हुआ किसके साथ हुआ और कैसे हुआ,) की जिज्ञासाओं का शमन करता हो तथा नए दौर की नई जरूरतों के अनुसार भविष्य के संदर्भ में एक नए सातवें ककार-आगे क्या (6th W-What next) के बारे में भी मार्गदर्शन करे। 
समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस-पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। हालांकि ‘न्यूज’ (NEWS) शब्द इस तरह तो नहीं बना है, परंतु इत्तफाकन ही सही इसका अर्थ और प्रमुख कार्य चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना देना भी है। 

समाचार को बड़ा या छोटा बनाने वाले तत्वः

अक्सर हम समाचारों के छोटा या बढ़ा छपने पर चर्चा करते हैं। अक्सर हमें लगता है कि हमारा समाचार छपना ही चाहिए, और वह भी बड़े आकार में। साथ ही यह भी लगता है कि खासकर हमारी अरुचि के समाचार बेकार ही आवश्यकता से बड़े आकारों या बड़ी हेडलाइन में छपे होते हैं।
आइए जानते हैं क्या है समाचारों के बड़ा या छोटा छपने का आधार। इससे पूर्व मेरी 1995 के दौर में लिखी एक कुमाउनी कविता ‘चिनांण’ यानी चिन्ह देखेंः 

आजा्क अखबारों में छन खबर
आतंकवाद, हत्या, अपहरण, 
चोर-मार, लूट-पाट, बलात्कार
ठुल हर्फन में
अर ना्न हर्फन में
सतसंग, भलाइ, परोपकार।

य छु पछ्यांण
आइ न है रय धुप्प अन्यार
य न्है, सब तिर बची जांणौ्क निसांण
य छु-आ्जि मस्त
बचियक चिनांड़।

किलैकि ठुल हर्फन में
छपनीं समाचार
अर ना्न हर्फन में-लोकाचार।

य ठीक छु बात
समाचार बणनईं लोकाचार
अर लोकाचार-समाचार।
जसी जाग्श्यरा्क जागनाथज्यूक
हातक द्यू
ऊंणौ तलि हुं। 

संचि छु हो,
उरी रौ द्यो,
पर आ्इ लै छु बखत।
जदिन समाचार है जा्ल पुर्रै लोकाचार
और लोकाचार छपा्ल ठुल हर्फन में
भगबान करों
झन आवो उ दिन कब्भै। 

हिन्दी भावानुवाद

आज के अखबारों में हैं खबर
आतंकवाद, हत्या, अपहरण
चोरी, डकैती व बलात्कार की
मोटी हेडलाइनों में
और छोटी खबरें
सतसंग, भलाई व परोपकार की।

यह पहचान है
अभी नहीं घिरा है धुप्प अंधेरा।
यह नहीं है पहचान, सब कुछ खत्म हो जाने की
यह है अभी बहुत कुछ 
बचे होने के चिन्ह।

क्योंकि मोटी हेडलाइनों में छपते हैं समाचार
और छोटी खबरों में लोकाचार।
हां यह ठीक है कि 
समाचार बन रहे लोकाचार
जैसे जागेश्वर में जागनाथ जी की मूर्ति के हाथों का दीपक
आ रहा है नींचे की ओर।

सच है, 
आने वाली है जोरों की बारिश प्रलय की
पर अभी भी समय है
जब समाचार पूरी तरह बन जाऐंगे लोकाचार, 
और लोकाचार छपेंगे मोटी हेडलाइनों में।
ईश्वर करें
ऐसा दिन कभी न आऐ।

यानी उस दौर में समाचारों के कम ज्ञान के बावजूद कहा गया है कि समाचार यानी कुछ अलग होने वाली गतिविधियां बड़े आकार में सामान्य गतिविधियां लोकाचार के रूप में छोटे आकार में छपती हैं। इसके अलावा भी निम्न तत्व हैं जो किसी समाचार को छोटा या बड़ा बनाते हैं। इसमें इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता है कि उस समाचार में शब्द कितने भी सीमित क्यों ना हों। प्रथम पेज पर कुछ लाइनों की खबर भी बड़ी खबर कही जाती है। वहीं एक या डेड़-दो कालम की खबर भी ‘बड़ी’ होने पर पूरे बैनर यानी सात-आठ कालम में भी पूरी चौड़ी हेडिंग तथा महत्वपूर्ण बिंदुआंे की सब हेडिंग या क्रासरों के साथ लगाई जा सकती है।
  1. प्रभाव-समाचार जितने अधिक लोगों से संबंधित होगा या उन्हें प्रभावित करेगा, उतना ही बड़ा होगा। किसी दुर्घटना में हताहतों की संख्या जितनी अधिक होगी, अथवा किसी दल, संस्था या समूह में जितने अधिक लोग होंगे, उससे संबंधित उतना ही बड़ा समाचार बनेगा।
  2. निकटता-समाचार जितना निकट से संबंधित होगा, उतना बड़ा होगा। दूर दुनिया की किसी बड़ी दुर्घटना से निकटवर्ती स्थान की छोटी घटना को भी अधिक स्थान मिल सकता है।
  3. विशिष्ट व्यक्ति (VIP)-जिस व्यक्ति से संबंधित खबर है, वह जितना विशिष्ट, जितना प्रभावी व प्रसिद्ध होगा, उससे संबंधित खबर उतनी ही बड़ी होगी। अलबत्ता, कई बार वास्तविक समाचार उस वीआईपी व्यक्ति के व्यक्तित्व में दब कर रह जाती है।
  4. तात्कालिकता-कोई ताजा घटना बड़े आकार में छपती है, लेकिन उससे भी कुछ बड़ा न हो तो आगे उसके फॉलो-अप छोटे छपते हैं। इसी प्रकार समाचार पत्र छपते के दौरान आखिर समय में प्राप्त होने वाली महत्वपूर्ण खबरें, पहले से प्राप्त कम महत्वपूर्ण खबरों को हटाकर भी बड़ी छापी जाती हैं। पत्रिकाओं में भी छपने के दौरान सबसे लेटेस्ट महत्वपूर्ण समाचार बड़े आकार में छापा जाता है।
  5. एक्सक्लूसिव होना-यदि कोई समाचार केवल किसी एक समाचार पत्र के पास ही हो, तो वह उसे बड़े आकार में प्रकाशित करता है। लेकिन वही समाचार यदि सभी समाचार पत्रों में होने पर छोटे आकार में प्रकाशित होता है।                                                                                                                         

समाचार के मूल्य

समाचार को बड़ा या छोटा यानी कम या अधिक महत्व का बनाने के लिए निम्न तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इन्हें समाचार का मूल्य कहा जाता है।
1 व्यापकता: समाचार का विषय जितनी व्यापकता लिये होगा, उतने ही अधिक लोग उस समाचार में रुचि लेंगे, इसलिए वह बड़े आकार में छपेगा।
2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का बड़ा गुण है-नई सूचना, यानी समाचार में नवीनता होनी चाहिये। कोई समाचार कितना नया या तत्काल प्राप्त हुआ हो, उसे जानने की उतनी ही अधिक चाहत होती है। कोई भी पुरानी या पहले से पता जानकारी को दुबारा नहीं लेना चाहता। समाचार पत्रों के मामले में एक दिन पुराने समाचार को ‘रद्दी’ कहा जाता है, और उसका कोई मोल नहीं होता। वहीं टीवी के मामले में एक सेकेंड पहले प्राप्त समाचार अगले सेकेंड में ही बासी हो जाता है। कहा जाने लगा है-News this second and History on next secondA

3 असाधारणता: हर समाचार एक नई सूचना होता है, परंतु यह भी सच है कि हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में कुछ असाधारणता होगी वही समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचार बनने की अंतरनिहित शक्ति पैदा होती है। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है। क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। जिस नई सूचना में असाधारणता नहीं होती वह समाचार नहीं लोकाचार कहलाता है।
4 सत्यता और प्रमाणिकता: समाचार में किसी घटना की सत्यता या तथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं।
5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता होने से ही वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिलचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधारण क्यों न हो अगर उसमें लोगों की रुचि न हो, तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिलचस्पी हो सकती है।
6 प्रभावशीलता: समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा।
7 स्पष्टता: एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो, लेकिन अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाषा में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी। क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधी और स्पष्ट होनी चाहिये।

Friday 27 December 2013

समाचार लेखन और संपादन

परिचय: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए वह एक जिज्ञासु प्राणी है। मनुष्य जिस समुह में, जिस समाज में और जिस वातावरण में रहता है वह उस बारे में जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसके लिये उसने प्राचीन काल से ही तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों को खोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना इन माध्यमों में सर्वाधिक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया। पत्र के जरिये अपने प्रियजनों मित्रों और शुभाकांक्षियों को अपना समाचार देना और उनका समाचार पाना आज भी मनुष्य के लिये सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। समाचारपत्र रेडियो टेलिविजन समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम साधन हैं जो मुद्रण रेडियो टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोज के बाद अस्तित्व में आये हैं।

समाचार की परिभाषा

लोग आमतौर पर अनेक काम मिलजुल कर ही करते हैं। सुख दुख की घड़ी में वे साथ होते हैं। मेलों और उत्सव में वे साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ ही होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिर लोगों को अनेक छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गांव कस्बे या शहर की कॉलोनी में बिजली पानी के न होने से लेकर बेरोजगारी और आर्थिक मंदी जैसी समस्याओं से उन्हें जूझना होता है। विचार घटनाएं और समस्यों से ही समाचार का आधार तैयार होता है। लोग अपने समय की घटनाओं रूझानों और प्रक्रियाओं पर सोचते हैं। उनपर विचार करते हैं और इन सबको लेकर कुछ करते हैं या कर सकते हैं। इस तरह की विचार मंथन प्रक्रिया के केन्द्र में इनके कारणों प्रभाव और परिणामों का संदर्भ भी रहता है। समाचार के रूप में इनका महत्व इन्हीं कारकों से निर्धारित होना चाहिये। किसी भी चीज का किसी अन्य पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से ही समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकतें हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।

समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं के सबसे पहले बताया जाता है और उसके बाद घटते हुये महत्व क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।
  •       किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है : डॉ निशांत सिंह
  •       किसी घटना की नई सूचना समाचार है : नवीन चंद्र पंत
  •       वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो : नंद किशोर त्रिखा
  •       किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है : संजीव भनावत
  •       ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो : रामचंद्र वर्मा

समाचार के मूल्य

1 व्यापकता : समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस दृ पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। न्यूज का अर्थ है चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना। इस प्रकार समाचार का अर्थ पुऐ चारों दिशाओं में घटित घटनाओं की सूचना।

2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का मतलब हुआ नई सूचना। अर्थात समाचार में नवीनता होनी चाहिये।

3 असाधारणता: हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में समाचारपन होगा वही नई सूचना समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचारपन पैदा करे। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। कहने का तात्पर्य है कि नई सूचना में समाचार बनने की क्षमता होनी चाहिये।

4 सत्यता और प्रमाणिकता : समाचार में किसी घटना की सत्यता या तथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं।

5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता और समाचारपन होने से हा वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिसचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधरण क्यों न हो अगर उसमे लोगों की रुचि नही है तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिचस्पी हो सकती है।

6 प्रभावशीलता : समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा।

7 स्पष्टता : एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाष में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधीऔर स्पष्ट होनी चाहिये।उल्टा पिरामिड शैली

ऐतिहासिक विकास

इस सिद्धांत का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य से शुरु हो गया था, लेकिन इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ था। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेश के जरिये भेजनी पड़ती थी, जिसकी सेवायें अनियमित, महंगी और दुर्लभ थी। यही नहीं कई बार तकनीकी कारणों से टेलीग्राफ सेवाओं में बाधा भी आ जाती थी। इसलिये संवाददाताओं को किसी खबर कहानी लिखने के बजाये संक्षेप में बतानी होती थी और उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण तथ्य और सूचनाओं की जानकारी पहली कुछ लाइनों में ही देनी पड़ती थी।

लेखन प्रक्रिया:

उल्टा पिरामिड सिद्धांत : उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना पिरामिड के निचले हिस्से में नहीं होती है और इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है और घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनायें सबसे निचले हिस्से में होती है।समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इंट्रो समाचार के पहले और कभी-कभी पहले और दूसरे दोनों पैराग्राफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बॉडी आती है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है। समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है। मुखड़ा या इंट्रो या लीड : उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है। एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है दृ क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक दृ दो ककार दिये जा सकते हैं। बॉडी: समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है। निष्कर्ष या समापन : समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।

समाचार संपादन

समाचार संपादन का कार्य संपादक का होता है। संपादक प्रतिदिन उपसंपादकों और संवाददाताओं के साथ बैठक कर प्रसारण और कवरेज के निर्देश देते हैं। समाचार संपादक अपने विभाग के समस्त कार्यों में एक रूपता और समन्वय स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

संपादन की प्रक्रिया-

रेडियो में संपादन का कार्य प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त होता है। 
1. विभिन्न श्रोतों से आने वाली खबरों का चयन
2. चयनित खबरों का संपादन :  रेडियो के किसी भी स्टेशन में  खबरों के आने के कई स्रोत होते हैं। जिनमें संवाददाता, फोन, जनसंपर्क, न्यूज एजेंसी, समाचार पत्र और आकाशवाणी मुख्यालय प्रमुख हैं। इन स्रोतों से आने वाले समाचारों को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर खबरों का चयन किया जाता है।  यह कार्य विभाग में बैठे उपसंपादक का होता है। उदाहरण के लिए यदि हम आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र के लिए समाचार बुलेटिन तैयार कर रहे हैं तो हमें लोकल याप्रदेश स्तर की खबर को प्राथमिकता देनी चाहिए। तत् पश्चात् चयनित खबरों का भी संपादन किया जाना आवश्यक होता है। संपादन की इस प्रक्रिया में बुलेटिन की अवधि को ध्यान में रखना जरूरी होता है। किसी रेडियो बुलेटिन की अवधि 5, 10 या अधिकतम 15मिनिट होती है।

संपादन के महत्वपूर्ण चरण

1.  समाचार आकर्षक होना चाहिए।
2.  भाषा सहज और सरल हो।
3.  समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
4. समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
5. शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
6.  समाचार में प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
7.  कम शब्दों में समाचार का ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
8.  रेडियो बुलेटिन के प्रत्येक समाचार में श्रोताओं के लिए सम्पूर्ण जानकारी होना
 चाहिये । 
9.   संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
10.  समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
11.  रेडियो के सभी श्रोता पढ़े लिखे नहीं होते, इस बात को ध्यान में रखकर भाषा और शब्दों का चयन किया जाना चाहिए।
12. रेडियो श्रव्य माध्यम है अतः समाचार की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि एक ही   बार सुनने पर समझ आ जाए।
13. समाचार में तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार   होने पर भी   इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए। 
14. समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता  होती है, ताकि समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके।

समाचार संपादन के तत्व

संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
1.  शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास  हो जाए। 
2.  शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
3.  शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
5.  अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है। 
6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या   उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है। 
7.  शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो  उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से  शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
8.  शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।   

2. आमुख- आमुख लिखते समय ‘पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए।

3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं।

 समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
  1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है। 
  2.  समाचार नीति के अनुरूप हो।
  3.  समाचार तथ्याधारित हो।
  4.  समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
  5.  समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे   पुष्ट बनाएँ।
  6.  समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस   कर दें।
  7.  समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
  8.  अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
  9.  ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो। 
 10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो। 
 11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
 12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
 13.  समाचार की भाषा मेंे एकरूपता होना चाहिए। 
 14.    समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।

समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत्में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें-
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोश।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
15. उच्चारित शब्द

समाचार के स्रोत

कभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन के लिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटना घट सकती है, जो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं-
1. संवाददाता- टेलीविजन और समाचार-पत्रों में संवाददाताओं की नियुक्ति ही इसलिए होती हैकि वह दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करें और उन्हें समाचार का स्वरूप दें।
2. समाचार समितियाँ- देश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जो विस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों और टीवी को प्रकाशन और प्रसारण के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों में पी.टी.आई. (भारत), यू.एन.आई. (भारत), ए.पी. (अमेरिका),  ए.एफ.पी. (फ्रान्स), रॉयटर (ब्रिटेन)।
3. प्रेस विज्ञप्तियाँ- सरकारी विभाग, सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्ठान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल और स्पष्ट भाषा में  लिखकर ब्यूरो आफिस में प्रसारण के लिए भिजवाते हैं। सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं।
(अ) प्रेस कम्युनिक्स- शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस कम्युनिक्स के माध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवश्यकता नहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ ओर सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग का नाम, स्थान और निर्गत करने की तिथि अंकित होती है। जबकि टीवी के लिए रिर्पोटर स्वयं जाता है 
(ब) प्रेस रिलीज-शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज के द्वारा समाचार-पत्र और टी.वी. चैनल के कार्यालयों को प्रकाशनार्थ भेजे जाते हैं। 
(स) हैण्ड आउट- दिन-प्रतिदिन के विविध विषयों, मन्त्रालय के क्रिया-कलापों की सूचना हैण्ड-आउट के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं।
(द) गैर-विभागीय हैण्ड आउट- मौखिक रूप से दी गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। 
4. पुलिस विभाग- सूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है। पूरे जिले में होनेवाली सभी घटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती है, जिसे पुलिसकर्मी-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं।
5. सरकारी विभाग- पुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभाग समाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करते हैं अथवा यह विभाग अपनीउपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाशन हेतु समाचार-पत्र और टीवी कार्यालयों को भेजते रहते हैं।
6. चिकित्सालय- शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
7. कॉरपोरेट आफिस- निजी क्षेत्र की कम्पनियों के आफिस अपनी कम्पनी से सम्बन्धित समाचारों को देने में दिलचस्पी रखते हैं। टेलीविजन में कई चैनल व्यापार पर आधारित हैं।
8. न्यायालय- जिला अदालतों के फैसले व उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख स्रोत हैं।
9. साक्षात्कार- विभागाध्यक्षों अथवा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं।
10. समाचारों का फॉलो-अप या अनुवर्तन- महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट रुचिकर समाचार बनते हैं। दर्शक चाहते हैं कि बड़ी घटनाओं के सम्बन्ध में उन्हें सविस्तार जानकारी मिलती रहे। इसके लिए संवाददाताओं को घटनाओं की तह तक जाना पड़ता है। 
11. पत्रकार वार्ता- सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अक्सर अपनी उपलब्धियों को प्रकाशित करने के लिए पत्रकारवार्ता का आयोजन करते हैं। उनके द्वारा दिए गए वक्तव्य समृद्ध समाचारों को जन्म देते हैं।
उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त सभा, सम्मेलन, साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम,विधानसभा, संसद, मिल, कारखाने और वे सभी स्थल जहाँ सामाजिक जीवन की घटना मिलती है, समाचार के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।

Wednesday 25 December 2013

भारत में हिंदी पत्रकारिता ( विस्तार से)

 हिन्दी का प्रथम पत्र ‘उदंत मार्तं
  • प्रथम चरण – सन् 1845 से 1877
  • द्वितीय चरण – सन् 1877 से 1890
  • तृतीय चरण – सन् 1890 से बाद तक
डॉ. रामरतन भटनागर ने अपने शोध प्रबंध ‘द राइज एंड ग्रोथ आफ हिंदी जर्नलिज्म’ काल विभाजन इस प्रकार किया है–
  • आरंभिक युग 1826 से 1867
  • उत्थान एवं अभिवृद्धि
    • प्रथम चरण (1867-1883) भाषा एवं स्वरूप के समेकन का युग
    • द्वितीय चरण (1883-1900) प्रेस के प्रचार का युग
  • विकास युग
    • प्रथम युग (1900-1921) आवधिक पत्रों का युग
    • द्वितीय युग (1921-1935) दैनिक प्रचार का युग
  • सामयिक पत्रकारिता – 1935-1945
उपरोक्त में से तीन युगों के आरंभिक वर्षों में तीन प्रमुख पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ, जिन्होंने युगीन पत्रकारिता के समक्ष आदर्श स्थापित किए। सन् 1867 में ‘कविवचन सुधा’, सन् 1883 में ‘हिन्दुस्तान’ तथा सन् 1900 में ‘सरस्वती’ का प्रकाशन है।
  • काशी नागरी प्रचारणी द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी साहित्य के वृहत इतिहास’ के त्रयोदय भाग के तृतीय खंड में यह काल विभाजन इस प्रकार किया गया है –
  1. प्रथम उत्थान – सन् 1826 से 1867
  2. द्वितीय उत्थान – सन् 1868 से 1920
  3. आधुनिक उत्थान – सन् 1920 के बाद
  • ‘ए हिस्ट्री आफ द प्रेस इन इंडिया’ में श्री एस नटराजन ने पत्रकारिता का अध्ययन निम्न प्रमुख बिंदुओं के आधार पर किया है –
  1. बीज वपन काल
  2. ब्रिटिश विचारधारा का प्रभाव
  3. राष्ट्रीय जागरण काल
  4. लोकतंत्र और प्रेस
  • डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने ‘हिंदी पत्रकारिता’ का अध्ययन करने की सुविधा की दृष्टि से यह विभाजन मोटे रूप से इस प्रकार किया है –
  1. भारतीय नवजागरण और हिंदी पत्रकारिता का उदय (सन् 1826 से 1867)
  2. राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रगति- दूसरे दौर की हिंदी पत्रकारिता (सन् 1867-1900)
  3. बीसवीं शताब्दी का आरंभ और हिंदी पत्रकारिता का तीसरा दौर – इस काल खण्ड का अध्ययन करते समय उन्होंने इसे तिलक युग तथा गांधी युग में भी विभक्त किया।
  • डॉ. रामचन्द्र तिवारी ने अपनी पुस्तक ‘पत्रकारिता के विविध रूप’ में विभाजन के प्रश्न पर विचार करते हुए यह विभाजन किया है –
  1. उदय काल – (सन् 1826 से 1867)
  2. भारतेंदु युग – (सन् 1867 से 1900)
  3. तिलक या द्विवेदी युग – (सन् 1900 से 1920)
  4. गांधी युग – (सन् 1920 से 1947)
  5. स्वातंत्र्योत्तर युग (सन् 1947 से अब तक)
  • डॉ. सुशील जोशी ने काल विभाजन कुछ ऐसा प्रस्तुत किया है –
  1. हिंदी पत्रकारिता का उद्भव – 1826 से 1867
  2. हिंदी पत्रकारिता का विकास – 1867 से 1900
  3. हिंदी पत्रकारिता का उत्थान – 1900 से 1947
  4. स्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता – 1947 से अब तक[2]
उक्त मतों की समीक्षा करने पर स्पष्ट होता है कि हिंदी पत्रकारिता का काल विभाजन विभिन्न विद्वानों पत्रकारों ने अपनी-अपनी सुविधा से अलग-अलग ढंग से किया है। इस संबंध में सर्वसम्मत काल निर्धारण अभी नहीं किया जा सका है। किसी ने व्यक्ति विशेष के नाम से युग का नामकरण करने का प्रयास किया है तो किसी ने परिस्थिति अथवा प्रकृति के आधार पर। इनमें एकरूपता का अभाव है।

हिंदी पत्रकारिता का उद्भव काल (1826 से 1867)

कलकत्ता से 30 मई, 1826 को ‘उदन्त मार्तण्ड’ के सम्पादन से प्रारंभ हिंदी पत्रकारिता की विकास यात्रा कहीं थमी और कहीं ठहरी नहीं है। पंडित युगल किशोर शुक्ल के संपादन में प्रकाशित इस समाचार पत्र ने हालांकि आर्थिक अभावों के कारण जल्द ही दम तोड़ दिया, पर इसने हिंदी अखबारों के प्रकाशन का जो शुभारंभ किया वह कारवां निरंतर आगे बढ़ा है। साथ ही हिंदी का प्रथम पत्र होने के बावजूद यह भाषा, विचार एवं प्रस्तुति के लिहाज से महत्त्वपूर्ण बन गया।

कलकत्ता का योगदान

पत्रकारिता जगत में कलकत्ता का बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रशासनिक, वाणिज्य तथा शैक्षिक दृष्टि से कलकत्ता का उन दिनों विशेष महत्व था। यहीं से 10 मई 1829 को राजा राममोहन राय ने ‘बंगदूत’ समाचार पत्र निकाला जो बंगलाफ़ारसीअंग्रेज़ी तथा हिंदी में प्रकाशित हुआ। बंगला पत्र ‘समाचार दर्पण’ के 21 जून 1834 के अंक ‘प्रजामित्र’ नामक हिंदी पत्र के कलकत्ता से प्रकाशित होने की सूचना मिलती है। लेकिन अपने शोध ग्रंथ में डॉ. रामरतन भटनागर ने उसके प्रकाशन को संदिग्ध माना है। ‘बंगदूदत’ के बंद होने के बाद 15 सालों तक हिंदी में कोई पत्र न निकला।

हिंदी पत्रकारिता का उत्थान काल (1900-1947)

सन 1900 का वर्ष हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में महत्त्वपूर्ण है। 1900 में प्रकाशित सरस्वती पत्रिका]अपने समय की युगान्तरकारी पत्रिका रही है। वह अपनी छपाई, सफाई, कागज और चित्रों के कारण शीघ्र ही लोकप्रिय हो गई। इसे बंगाली बाबू चिन्तामणि घोष ने प्रकाशित किया था तथा इसे नागरी प्रचारिणी सभा का अनुमोदन प्राप्त था। इसके सम्पादक मण्डल में बाबू राधाकृष्ण दास, बाबू कार्तिका प्रसाद खत्री, जगन्नाथदास रत्नाकर, किशोरीदास गोस्वामी तथा बाबू श्यामसुन्दरदास थे। 1903 में इसके सम्पादन का भार आचार्य महावर प्रसाद द्विवेदी पर पड़ा। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदी-रसिकों के मनोरंजन के साथ भाषा के सरस्वती भण्डार की अंगपुष्टि, वृद्धि और पूर्ति करन था। इस प्रकार 19वी शताब्दी में हिंदी पत्रकारिता का उद्भव व विकास बड़ी ही विषम परिस्थिति में हुआ। इस समय जो भी पत्र-पत्रिकाएं निकलती उनके सामने अनेक बाधाएं आ जातीं, लेकिन इन बाधाओं से टक्कर लेती हुई हिंदी पत्रकारिता शनैः-शनैः गति पाती गई।

हिंदी पत्रकारिता का उत्कर्ष काल (1947 से प्रारंभ)

अपने क्रमिक विकास में हिंदी पत्रकारिता के उत्कर्ष का समय आज़ादी के बाद आया। 1947 में देश को आज़ादी मिली। लोगों में नई उत्सुकता का संचार हुआ। औद्योगिक विकास के साथ-साथ मुद्रण कला भी विकसित हुई। जिससे पत्रों का संगठन पक्ष सुदृढ़ हुआ। रूप-विन्यास में भी सुरूचि दिखाई देने लगी। आज़ादी के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में अपूर्व उन्नति होने पर भी यह दुख का विषय है कि आज हिंदी पत्रकारिता विकृतियों से घिरकर स्वार्थसिद्धि और प्रचार का माध्यम बनती जा रही है। परन्तु फिर भी यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि भारतीय प्रेस की प्रगति स्वतंत्रता के बाद ही हुई। यद्यपि स्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता ने पर्याप्त प्रगति कर ली है किन्तु उसके उत्कर्षकारी विकास के मार्ग में आने वाली बाधाएं भी कम नहीं हैं।

प्रतिबंधित पत्र-पत्रिकाएँ

भारत के स्वाधीनता संघर्ष में पत्र-पत्रिकाओं की अहम भूमिका रही है। आजादी के आन्दोलन में भाग ले रहा हर आम-ओ-खास कलम की ताकत से वाकिफ था। राजा राममोहन रायमहात्मा गांधीमौलाना अबुल कलाम आज़ादबाल गंगाधर तिलकपंडित मदनमोहन मालवीयबाबा साहब अम्बेडकरयशपाल जैसे आला दर्जे के नेता सीधे-सीधे तौर पर पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े हुए थे और नियमित लिख रहे थे। जिसका असर देश के दूर-सुदूर गांवों में रहने वाले देशवासियों पर पड़ रहा था। अंग्रेजी सरकार को इस बात का अहसास पहले से ही था, लिहाजा उसने शुरू से ही प्रेस के दमन की नीति अपनाई। 30 मई 1826 को कलकत्ता से पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकलने वाले ‘उदंत्त मार्तण्ड’ को हिंदी का पहला समाचार पत्र माना जाता है। अपने समय का यह ख़ास समाचार पत्र था, मगर आर्थिक परेशानियों के कारण यह जल्दी ही बंद हो गया। आगे चलकर माहौल बदला और जिस मकसद की खातिर पत्र शुरू किये गये थे, उनका विस्तार हुआ। समाचार सुधावर्षण, अभ्युदय, शंखनाद, हलधर, सत्याग्रह समाचार, युद्धवीर, क्रांतिवीर, स्वदेश, नया हिन्दुस्तान, कल्याण, हिंदी प्रदीप, ब्राह्मण,बुन्देलखण्ड केसरी, मतवाला सरस्वती, विप्लव, अलंकार, चाँद, हंस, प्रताप, सैनिक, क्रांति, बलिदान, वालिंट्यर आदि जनवादी पत्रिकाओं ने आहिस्ता-आहिस्ता लोगों में सोये हुए वतनपरस्ती के जज्बे को जगाया और क्रांति का आह्नान किया।
नतीजतन उन्हें सत्ता का कोपभाजन बनना पड़ा। दमन, नियंत्रण के दुश्चक्र से गुजरते हुए उन्हें कई प्रेस अधिनियमों का सामना करना पड़ा। ‘वर्तमान पत्र’ में पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा लिखा ‘राजनीतिक भूकम्प’ शीर्षक लेख, ‘अभ्युदय’ का भगत सिंह विशेषांक, किसान विशेषांक, ‘नया हिन्दुस्तान’ के साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और फॉसीवादी विरोधी लेख, ‘स्वदेश’ का विजय अंक, ‘चॉंद’ का अछूत अंक, फॉंसी अंक, ‘बलिदान’ का नववर्षांक, ‘क्रांति’ के 1939 के सितम्बर, अक्टूबर अंक, ‘विप्लव’ का चंद्रशेखर अंक अपने क्रांतिकारी तेवर और राजनीतिक चेतना फैलाने के इल्जाम में अंग्रेजी सरकार की टेढ़ी निगाह के शिकार हुए और उन्हें जब्ती, प्रतिबंध, जुर्माना का सामना करना पड़ा। संपादकों को कारावास भुगतना पड़ा।

गवर्नर जनरल वेलेजली

भारतीय पत्रकारिता की स्वाधीनता को बाधित करने वाला पहला प्रेस अधिनियम गवर्नर जनरल वेलेजली के शासनकाल में 1799 को ही सामने आ गया था। भारतीय पत्रकारिता के आदिजनक जॉन्स आगस्टक हिक्की के समाचार पत्र ‘हिक्की गजट’ को विद्रोह के चलते सर्वप्रथम प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। हिक्की को एक साल की कैद और दो हजार रूपए जुर्माने की सजा हुई। कालांतर में 1857 में गैंगिंक एक्ट, 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1908 में न्यूज पेपर्स एक्ट (इन्साइटमेंट अफैंसेज), 1910 में इंडियन प्रेस एक्ट, 1930 में इंडियन प्रेस आर्डिनेंस, 1931 में दि इंडियन प्रेस एक्ट (इमरजेंसी पावर्स) जैसे दमनकारी क़ानून अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित करने के उद्देश्य से लागू किए गये। अंग्रेजी सरकार इन काले क़ानूनों का सहारा लेकर किसी भी पत्र-पत्रिका पर चाहे जब प्रतिबंध, जुर्माना लगा देती थी। आपत्तिजनक लेख वाले पत्र-पत्रिकाओं को जब्त कर लिया जाता। लेखक, संपादकों को कारावास भुगतना पड़ता व पत्रों को दोबारा शुरू करने के लिए जमानत की भारी भरकम रकम जमा करनी पड़ती। बावजूद इसके समाचार पत्र संपादकों के तेवर उग्र से उग्रतर होते चले गए। आजादी के आन्दोलन में जो भूमिका उन्होंने खुद तय की थी, उस पर उनका भरोसा और भी ज्यादा मजबूत होता चला गया। जेल, जब्ती, जुर्माना के डर से उनके हौसले पस्त नहीं हुये।

बीसवीं सदी की शुरुआत

बीसवीं सदी के दूसरे-तीसरे दशक में सत्याग्रहअसहयोग आन्दोलनसविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रचार प्रसार और उन आन्दोलनों की कामयाबी में समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही। कई पत्रों ने स्वाधीनता आन्दोलन में प्रवक्ता का रोल निभाया। कानपुर से 1920 में प्रकाशित ‘वर्तमान’ ने असहयोग आन्दोलन को अपना व्यापक समर्थन दिया था। पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा शुरू किया गया साप्ताहिक पत्र ‘अभ्युदय’ उग्र विचारधारा का हामी था। अभ्युदय के भगत सिंह विशेषांक में महात्मा गांधीसरदार पटेलमदनमोहन मालवीयपंडित जवाहरलाल नेहरू के लेख प्रकाशित हुए। जिसके परिणामस्वरूप इन पत्रों को प्रतिबंध- जुर्माना का सामना करना पड़ा। गणेश शंकर विद्यार्थी का ‘प्रताप’, सज्जाद जहीर एवं शिवदान सिंह चैहान के संपादन में इलाहाबाद से निकलने वाला ‘नया हिन्दुस्तान’ राजाराम शास्त्री का ‘क्रांति’ यशपाल का ‘विप्लव’ अपने नाम के मुताबिक ही क्रांतिकारी तेवर वाले पत्र थे। इन पत्रों में क्रांतिकारी युगांतकारी लेखन ने अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ा दी थी। अपने संपादकीय, लेखों, कविताओं के जरिए इन पत्रों ने सरकार की नीतियों की लगातार भतर्सना की। ‘नया हिन्दुस्तान’ और ‘विप्लव’ के जब्तशुदा प्रतिबंधित अंकों को देखने से इनकी वैश्विक दृष्टि का पता चलता है।

‘चाँद’ का फाँसी अंक

फाँसीवाद के उदय और बढ़ते साम्राज्यवाद, पूंजीवाद पर चिंता इन पत्रों में साफ़ देखी जा सकती है। गोरखपुर से निकलने वाले साप्ताहिक पत्र ‘स्वदेश’ को जीवंतपर्यंत अपने उग्र विचारों और स्वतंत्रता के प्रति समर्पण की भावना के कारण समय-समय पर अंग्रेजी सरकार की कोप दृष्टि का शिकार होना पड़ा। खासकर विशेषांक विजयांक को। आचार्य चतुरसेन शास्त्री द्वारा संपादित ‘चाँद’ के फाँसी अंक की चर्चा भी जरूरी है। काकोरी के अभियुक्तों को फांसी के लगभग एक साल बाद, इलाहाबाद से प्रकाशित चॉंद का फाँसी अंक क्रांतिकारी आन्दोलन के इतिहास की अमूल्य निधि है। यह अंक क्रांतिकारियों की गाथाओं से भरा हुआ है। सरकार ने अंक की जनता में जबर्दस्त प्रतिक्रिया और समर्थन देख इसको फौरन जब्त कर लिया और रातों-रात इसके सारे अंक गायब कर दिये। अंग्रेज हुकूमत एक तरफ क्रांतिकारी पत्र-पत्रिकाओं को जब्त करती रही, तो दूसरी तरफ इनके संपादक इन्हें बिना रुके पूरी निर्भिकता से निकालते रहे। सरकारी दमन इनके हौसलों पर जरा भी रोक नहीं लगा सका। पत्र-पत्रिकाओं के जरिए उनका यह प्रतिरोध आजादी मिलने तक जारी रहा।

19वीं शताब्दी में प्रकाशित भारतीय समाचार पत्र

समाचार पत्रसंस्थापक/सम्पादकभाषाप्रकाशन स्थानवर्ष
अमृत बाज़ार पत्रिकामोतीलाल घोषबंगलाकलकत्ता1868 ई.
अमृत बाज़ार पत्रिकामोतीलाल घोषअंग्रेज़ीकलकत्ता1878 ई.
सोम प्रकाशईश्वरचन्द्र विद्यासागरबंगलाकलकत्ता1859 ई.
बंगवासीजोगिन्दर नाथ बोसबंगलाकलकत्ता1881 ई.
संजीवनीके.के. मित्राबंगलाकलकत्ता
हिन्दूवीर राघवाचारीअंग्रेज़ीमद्रास1878 ई.
केसरीबाल गंगाधर तिलकमराठीबम्बई1881 ई.
मराठाबाल गंगाधर तिलकअंग्रेज़ी--
हिन्दूएम.जी. रानाडेअंग्रेज़ीबम्बई1881 ई.
नेटिव ओपीनियनवी.एन. मांडलिकअंग्रेज़ीबम्बई1864 ई.
बंगालीसुरेन्द्रनाथ बनर्जीअंग्रेज़ीकलकत्ता1879 ई.
भारत मित्रबालमुकुन्द गुप्तहिन्दी--
हिन्दुस्तानमदन मोहन मालवीयहिन्दी--
हिन्द-ए-स्थानरामपाल सिंहहिन्दीकालाकांकर (उत्तर प्रदेश)-
बम्बई दर्पणबाल शास्त्रीमराठीबम्बई1832 ई.
कविवचन सुधाभारतेन्दु हरिश्चन्द्रहिन्दीउत्तर प्रदेश1867 ई.
हरिश्चन्द्र मैगजीनभारतेन्दु हरिश्चन्द्रहिन्दीउत्तर प्रदेश1872 ई.
हिन्दुस्तान स्टैंडर्डसच्चिदानन्द सिन्हाअंग्रेज़ी-1899 ई.
ज्ञान प्रदायिनीनवीन चन्द्र रायहिन्दी-1866 ई.
हिन्दी प्रदीपबालकृष्ण भट्टहिन्दीउत्तर प्रदेश1877 ई.
इंडियन रिव्यूजी.ए. नटेशनअंग्रेज़ीमद्रास-
मॉडर्न रिव्यूरामानन्द चटर्जीअंग्रेज़ीकलकत्ता-
यंग इंडियामहात्मा गाँधीअंग्रेज़ीअहमदाबाद8 अक्टूबर1919 ई.
नव जीवनमहात्मा गाँधीहिन्दीगुजरातीअहमदाबाद7 अक्टूबर, 1919 ई.
हरिजनमहात्मा गाँधीहिन्दी, गुजरातीपूना11 फ़रवरी1933 ई.
इनडिपेंडेसमोतीलाल नेहरूअंग्रेज़ी-1919 ई.
आजशिवप्रसाद गुप्तहिन्दी--
हिन्दुस्तान टाइम्सके.एम.पणिक्करअंग्रेज़ीदिल्ली1920 ई.
नेशनल हेराल्डजवाहरलाल नेहरूअंग्रेज़ीदिल्लीअगस्त1938 ई.
उद्दण्ड मार्तण्डजुगल किशोरहिन्दी (प्रथम)कानपुर1826 ई.
द ट्रिब्यूनसर दयाल सिंह मजीठियाअंग्रेज़ीचण्डीगढ़1877 ई.
अल हिलालअबुल कलाम आज़ादउर्दूकलकत्ता1912 ई.
अल बिलागअबुल कलाम आज़ादउर्दूकलकत्ता1913 ई.
कामरेडमौलाना मुहम्मद अलीअंग्रेज़ी--
हमदर्दमौलाना मुहम्मद अलीउर्दू--
प्रताप पत्रगणेश शंकर विद्यार्थीहिन्दीकानपुर1910 ई.
गदरग़दर पार्टी द्वाराउर्दू/गुरुमुखीसॉन फ़्रांसिस्को1913 ई.
गदरगदर पार्टी द्वारापंजाबी-1914 ई.
हिन्दू पैट्रियाटहरिश्चन्द्र मुखर्जीअंग्रेज़ी-1855 ई.
मद्रास स्टैंडर्ड, कॉमन वील, न्यू इंडियाएनी बेसेंटअंग्रेज़ी-1914 ई.
सोशलिस्टएस.ए.डांगेअंग्रेज़ी-1922 ई.